क्यों ज़रूरी है आयुर्वेदिक आहार-विहार सभी के लिए.

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🌿 क्यों आयुर्वेदिक आहार एवं जीवनशैली की अवधारणा सभी के लिए आवश्यक है?

👉 उद्देश्य: स्वस्थ भारत – श्रेष्ठ भारत की दिशा में एक ठोस जनजागृति।
✨ 🔰 भूमिका (Introduction)
भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद न केवल रोगों की चिकित्सा करती है, बल्कि स्वस्थ जीवन जीने की कला भी सिखाती है।
आधुनिक जीवनशैली से उपजी बीमारियाँ — जैसे मधुमेह, थायरॉयड, मोटापा, मानसिक तनाव, हृदय रोग — का मूल कारण है विकारयुक्त आहार-विहार।
नाड़ी वैद्य ट्रस्ट हीलिंग हैंड्स का यह संकल्प है कि “हर व्यक्ति तक स्वस्थ जीवनशैली एवं सही आहार की शिक्षा पहुँचे”, ताकि हम एक स्वस्थ भारत – श्रेष्ठ भारत का निर्माण कर सकें।
📌 🌱 क्यों ज़रूरी है आयुर्वेदिक आहार-विहार सभी के लिए? (तर्क सहित बिंदुवार विवरण)
1️⃣ स्वास्थ्य का मूल उद्देश्य ही आयुर्वेद है
> “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं च”
– चरक संहिता सूत्रस्थान 30/26
👉 यह श्लोक स्पष्ट करता है कि आयुर्वेद का पहला कार्य है स्वस्थ व्यक्ति की रक्षा — जो केवल नियमित जीवनचर्या और शुद्ध आहार से संभव है।
2️⃣ हर व्यक्ति की प्रकृति अलग — इसलिए आहार भी अलग
यह “One-size-fits-all” नहीं, बल्कि “Personalized Wellness” पर आधारित है।
> “न हि सर्वेषु सर्वाणि भेषजानी उपयुज्यन्ते”
– चरक संहिता, सूत्रस्थान 1/121
👉 हर व्यक्ति की प्रकृति (वात-पित्त-कफ) भिन्न होती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण व्यक्ति के स्वभाव, ऋतु, देश, आयु के अनुसार आहार सुझाता है। यह व्यक्तिगत पोषण (personalized nutrition) का सबसे पुराना विज्ञान है।
3️⃣ गलत आहार जीवनशैली = रोगों का जड़
> “अजीर्णे भोजनं विषम्”
– चक्रदत्त
👉 जब तक पाचन ठीक नहीं है, तब तक कोई भी खाना अमृत नहीं, बल्कि ज़हर बन जाता है।
बिना दोष परीक्षण के, गलत समय पर, गलत संयोजन में भोजन – ये सभी रोग का कारण बनते हैं। (जैसे – दूध+फल, दही+फल, रात का भारी भोजन)
4️⃣ दिनचर्या और ऋतुचर्या: प्राकृतिक संतुलन का मूल मंत्र
> “ऋतुभिर्व्यायमं कुर्यात्…”
– अष्टांग हृदयम्
👉 आयुर्वेद ऋतु के अनुसार आहार-विहार की सलाह देता है — जिससे वात, पित्त, कफ संतुलन में रहें। जैसे गर्मियों में बेल शरबत, सर्दियों में च्यवनप्राश, वर्षा में पंचकर्म.
आयुर्वेद कहता है, “मौसम के अनुसार आहार-विहार न बदलना रोग का कारण है”
> “ऋतुसंदर्शितं युक्तं यः करोति स जीवति”
(चरक संहिता)
गर्मी में शीतल, वर्षा में लघु, शरद में तिक्त आहार – यही रोग निवारण है।
5️⃣ मन और शरीर का संबंध: सात्त्विक आहार से मन भी स्वस्थ
> “आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः”
– छांदोग्य उपनिषद
👉 यदि आहार सात्त्विक होगा तो मन शुद्ध, शांत, प्रसन्न और सकारात्मक होगा। जंक फूड और रजस-तामसिक भोजन से क्रोध, अवसाद, लालच, थकान आदि बढ़ते हैं।
6️⃣ पाचन अग्नि = शरीर की रक्षा प्रणाली
> “अग्नि सर्वेषां शरीराणां मूलं”
– चरक संहिता
👉 आयुर्वेद का मानना है कि हम उतने ही स्वस्थ हैं जितनी हमारी अग्नि मजबूत है। सही समय पर, संतुलित मात्रा में भोजन से अग्नि तेज होती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
7️⃣ आहार-जीवनशैली सुधार = दवा की आवश्यकता नहीं
> “नित्यं हिताहारविहारसेविनं…”
– चरक संहिता 1/28
👉 जो व्यक्ति सही आहार और दिनचर्या का पालन करता है, उसे रोग छू भी नहीं सकते।
वर्तमान समय में जब औषधियों का दुष्प्रभाव बढ़ रहा है, आहार-विहार चिकित्सा ही स्थायी समाधान है।
🌍 🔗 सामाजिक स्तर पर इसका महत्व (Nadi Vaidya Trust की दृष्टि से)
👉बच्चों में रोगों की रोकथाम = शुरुआत में सही भोजन की शिक्षा
👉महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन = आहार-संयम से समाधान
👉वृद्धजनों में स्थिर स्वास्थ्य = त्रिदोष शमन भोजन
👉ग्रामीण भारत में जनजागरूकता = “घर-घर आयुर्वेद, घर-घर नाड़ी”
✅ 🌟 निष्कर्ष (Conclusion)
आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि Gut Health (पाचन), Circadian Rhythm (दिनचर्या), Personalized Nutrition ही आधुनिक स्वास्थ्य का मूल है – जो आयुर्वेद पहले से कहता आ रहा है।
“आयुर्वेद जीवन है, औषधि नहीं।
जीवनशैली है, जटिल चिकित्सा नहीं।”
आयुर्वेदिक आहार और जीवनशैली अपनाना केवल रोग से बचने का उपाय नहीं, यह एक जीवन-दर्शन है – जिसमें शरीर, मन और आत्मा तीनों का संतुलन है।
आज जब हर घर में कोई न कोई रोगग्रस्त है, तब “हर व्यक्ति वैद्य बने” — यह संकल्प ही “नाड़ी वैद्य ट्रस्ट हीलिंग हैंड्स” की आत्मा है।
👉 हमारा मिशन है:
“हर घर पहुँचे आरोग्य की बात,
हर मन में हो सात्त्विकता की बात।”
🙏 आइए, मिलकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाएं —
स्वस्थ भारत – श्रेष्ठ भारत की ओर।
सप्रेम,
नाड़ी वैद्य डॉ. अजित सिंह यादव
(संस्थापक, नाड़ी वैद्य परिवार)
📞 8950770385, 8396066555

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