“जलाधिक्यपरिणामः: आयुर्वेद और विज्ञान के दृष्टिकोण से संतुलित जल सेवन का महत्व”

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जलाधिक्यान्मनुष्याणामामवृद्धिः प्रजायते ।

आमवृद्ध्या तु मन्दाग्निर्मन्दाग्नौ चाप्यजीर्णता ।। १ ।।

अजीर्णेन ज्वरोत्पत्तिज्वराद्वै धातुनाशनम् ।

धातुनाशात्सर्वरोगा जायन्ते चोत्तरोत्तरम् ।। २ ।।

 

जलाधिक्य और इसका आयुर्वेदिक संदर्भ
आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में संतुलित मात्रा में जल का सेवन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। लेकिन अत्यधिक जल पीने से शरीर के अग्नि और धातु संतुलन में बाधा उत्पन्न होती है। जलाधिक्य (अत्यधिक जल पीने) से उत्पन्न दोषों का वर्णन आयुर्वेद में निम्न प्रकार से किया गया है:

1. आम दोष की वृद्धि:
अत्यधिक जल के सेवन से पाचन तंत्र की क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे अपचित भोजन (आम) का संचय होता है। यह शरीर के विभिन्न दोषों को उत्पन्न करता है।

2. मंदाग्नि:
आम दोष की वृद्धि के कारण अग्नि (पाचन शक्ति) मंद पड़ जाती है। कमजोर पाचन शक्ति के कारण शरीर में भोजन का पूर्ण रूप से पाचन नहीं हो पाता।

3. अजीर्ण:
मंदाग्नि के परिणामस्वरूप, अजीर्ण (अपच) होता है। यह स्थिति शरीर में विषाक्त पदार्थों के संचय को बढ़ावा देती है।

4. ज्वर (बुखार):
अपच से उत्पन्न विषाक्त पदार्थ शरीर में गर्मी उत्पन्न करते हैं, जिससे बुखार की स्थिति उत्पन्न होती है।

5. धातु नाश:
बुखार के कारण रस, रक्त, मांस, मेद, आदि धातुओं का क्षय होता है। धातु क्षय से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती है और व्यक्ति रोगों का शिकार हो जाता है।

6. रोगों की उत्तरोत्तर वृद्धि :
जब धातुएं क्षीण हो जाती हैं, तो शरीर में विकार बढ़ने लगते हैं और विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यधिक जल का सेवन स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसे “वॉटर इंटॉक्सिकेशन” या हाइपोनेट्रेमिया कहा जाता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर में सोडियम का स्तर असंतुलित हो जाता है।

1. पाचन तंत्र पर प्रभाव :
– अत्यधिक जल पीने से पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड (HCl) का घनत्व कम हो जाता है, जिससे भोजन का पाचन ठीक से नहीं होता।
– यह गैस्ट्रिक जूस को पतला कर देता है, जिससे एंजाइम की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।

2. किडनी पर प्रभाव :
– किडनी की क्षमता से अधिक जल का सेवन करने से अतिरिक्त जल बाहर निकालने में कठिनाई होती है।
– अत्यधिक जल सेवन किडनी पर तनाव डालता है और मूत्रमार्ग संक्रमण (UTI) जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।

3. हाइपोनेट्रेमिया :
– जब रक्त में सोडियम का स्तर गिरता है, तो कोशिकाओं में जल का संचय होता है, जिससे मस्तिष्क की सूजन (ब्रेन स्वेलिंग) और सिरदर्द, मतली, उल्टी, भ्रम, और गंभीर मामलों में मृत्यु भी हो सकती है।

4. मेटाबोलिज्म पर प्रभाव :
– अत्यधिक जल से मेटाबोलिक प्रक्रियाएं धीमी हो सकती हैं, जिससे ऊर्जा का उत्पादन कम हो जाता है और थकान की स्थिति उत्पन्न होती है।

 संतुलित जल सेवन के फायदे
– आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों ही संतुलित मात्रा में जल पीने को स्वस्थ जीवन का आधार मानते हैं।
– शरीर के लिए आवश्यक जल की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे आयु, शारीरिक गतिविधि, मौसम, और स्वास्थ्य की स्थिति।
– आमतौर पर दिनभर में 2-3 लीटर जल का सेवन पर्याप्त होता है, लेकिन इसे भोजन के तुरंत बाद या बीच-बीच में अधिक मात्रा में पीने से बचना चाहिए।

जल सेवन से संबंधित सुझाव
1. भोजन से पहले और बाद में केवल थोड़ी मात्रा में जल पिएं।
2. भोजन के दौरान जल पीने से बचें, क्योंकि यह पाचन रसों को पतला कर सकता है।
3. प्यास लगने पर ही जल पिएं, अनावश्यक रूप से अधिक मात्रा में जल न लें।
4. आयुर्वेदिक दृष्टि से, उबला हुआ और हल्का गर्म पानी पाचन में सहायक होता है।

निष्कर्ष
अत्यधिक जल पीने के नुकसान को समझते हुए, आयुर्वेद और विज्ञान दोनों ही जल सेवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देते हैं। जल का अत्यधिक सेवन केवल स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा देता है, जबकि संतुलित मात्रा में जल का सेवन शरीर को ऊर्जा, पोषण और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। स्वस्थ जीवन के लिए व्यक्ति को अपने शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार जल सेवन करना चाहिए।

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