वास्तविकता के धरातल पर अगर हम देखें तो पाएंगे कि आयुर्वेद में सही मायने में चिकित्सा का ज्ञान किसी विद्वान वैद्य के सानिध्य में ही प्राप्त किया जा सकता है।
हमें याद है 1989 में श्री कृष्ण राजकीय आयुर्वेदिक कालेज कुरूक्षेत्र से BAMS की डिग्री हासिल कर आयुर्वेद के सही ज्ञान की खोज में हमने सही मायने में काफी धक्के खाए।
ज्ञान की खोज में हम हरिद्वार पहुंचे, रोज सुबह तैयार होकर निकल जाते थे कभी किसी वैद्य के यहां, कभी किसी फार्मेसी में व कभी किसी आयुर्वेदिक कालेज में।
कई दिनों तक इधर-उधर घूमने के बाद कहीं से भी कोई राह नहीं मिली सच तो यह है कि किसी ने ढंग से बात ही नहीं करी।
एक दिन एक मशहूर आयुर्वेदिक संस्थान के मालिक ने अपने पास बैठा कर समझाया कि जाओ वापस चले जाओ।
कोई भी आयुर्वेदिक डॉक्टर आप को कुछ भी नहीं बताने वाला है।
खुद प्रेक्टिस करो और खुद ही सीखना होगा।
मन परेशान तो बहुत हुआ वापिस भी आ गया लेकिन हिम्मत नहीं हारी ।
और आज आपके सामने हूं –
नाड़ी वैद्य अजीत सिंह यादव
जीवन यात्रा एक पड़ाव ………. मंजिल अभी बाकी है।
“ नाड़ी सीखने के कुछ नियम एवं योग्यता”
1:-जो गुरु शिष्य परम्परा में आस्था रखते हैं ।
2:-नाड़ी वैद्य गुरुकुल Aके उद्देश्यों में विश्वास रखते है।
3:-नाड़ी परीक्षा की वर्कशॉप के समय आप ने सिर्फ सुनना है , समझना है , मनन करना है एवं नाड़ी की यात्रा को अनुभव करना है।
4:- एक गुरुकुल में अध्ययन के पश्चात परम्परा अनुसार गुरूदेव ने सभी शिष्यों को एक कार्य करने के लिए दिया।
वह कार्य पूर्ण करने वाले शिष्य को ही गुरूकुल द्वारा प्रमाणपत्र जारी किया जाता था।
गुरूदेव ने प्रातः सभी शिष्यों को शहतूत की बनी एक एक टोकरी देकर कहा कि एक निश्चित समय सीमा में आप सभी ने पास में बहती हुई नदी में से इस टोकरी में पानी भर कर लाना है
गुरू जी तो इतना कह कर चले गए, लेकिन सभी शिष्यों की स्थिति देखने लायक थी।
सभी एक दूसरे की तरफ देख कर चुपचाप नदी की तरफ चल दिए।
पानी में टोकरी को डाल कर बाहर निकालते, बाहर निकालते ही पानी धीरे-धीरे टोकरी के छिद्रों से निकल कर बाहर आ जाता।
सभी शिष्यों की स्थिति देखने लायक थी।
इ धीरे धीरे कुछ थक गए एवं वापस चले गए।
कुछ को लगा कि जरूर गुरूदेव आज हम से गुस्से में ऐसा कार्य दे गए हैं ।कल फिर से बात करेंगे।
लेकिन एक शिष्य बार बार टोकरी को नदी में डाल कर निकालता रहा।
वह मन ही मन गुरु की शिक्षा को दोहराता रहता व इस कार्य के संदर्भ में कही कोई भी बात उसको ध्यान नहीं आई।
लेकिन वह कार्य में लगा रहा, क्योंकि उसको अपने गुरु पर विश्वास था कि यदि उन्होंने कुछ कहा है तो वह जरूर सच होगा।
धीरे धीरे दिन ढलने लगा, उसका शरीर भी थोड़ा सा थकावट महसूस करने लगा लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
धीरे धीरे टोकरी की टहनियों के पानी में डूबे रहने से
वह फूलने लगी व उसके छिद्र बंद होने लगे।
उसने देखा कि अब पानी उस टोकरी में ज्यादा देर तक रूकने लगा उसकी हिम्मत बढ़ने लगी।
शाम होते होते सभी छिद्र बंद हो गए व टोकरी में पानी निकलना बंद हो गया।
आगे आप सभी समझदार हैं।
5:- एक बार महात्मा बुद्ध के पास एक व्यक्ति अपने काफी सारे अनुभव से उपजे सवाल एवं मुश्किलों के समाधान के लिए उनके पास गया।
उसने कहा कि मैं आप के पास सभी तरह की कोशिशें करने के पश्चात आया हूं कृपया आप मेरी सभी समस्याओं का समाधान करने की कृपा करें।
महात्मा बुद्ध ने उसकी किसी भी बात को सुनें बिना उससे सामने एक वट वृक्ष के नीचे कुछ दिन तक मौन व्रत धारण कर ध्यान में बैठने के लिए कहा।
वह भी उनकी बात को दिल से मान कर वट वृक्ष के पास चला गया।
वहां पहले से बैठा एक व्यक्ति उसको देख कर हंसने लगा, उसने उस व्यक्ति से पूछा कि भाई मैं परेशान हूं व आप मेरी हालत को जानकर भी हंस रहे हो क्या कारण है।
वह व्यक्ति मुस्कुरा कर बोला हे वत्स अगर आप ने महात्मा बुद्ध जी के बताए अनुसार ध्यान कर लिया तो आप को सभी सवालों का जवाब अपने आप ही मिल जाएगा।
आप के पास कोई भी सवाल नहीं रहेगा।
धन्यवाद
🙏नाड़ी परीक्षा सीखने के तीन मूलभूत सिद्धांत है यथा
🌷सम्बंधित विषय पर विस्तृत पाठ्य सामग्री का अध्ययन करना।
🌷गुरु द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करना।
🌷स्वयं द्वारा अनुभव प्राप्त करना।
🙏विशेष:-
1- स्वयं को ज्यादा समझदार समझने वाले व्यक्ति हम जैसे अल्पज्ञानी लोगों से दूर ही रहने की कृपा करें।
2- नाड़ी परीक्षा वर्कशाप के दौरान ज्यादा प्रश्न पूछने की आदत वाले व्यक्ति कृपया अपनी इस आदत को त्यागकर आएं।
🙏
_”भगवान धन्वंतरि हम सब को सपरिवार स्वस्थ, सुखी और समृद्ध रखें यही प्रार्थना है।
नाड़ी वैद्य अजीत सिंह यादव
आयुर्वेदाचार्य
आहार-विहार एवं नाड़ी परीक्षा विशेषज्ञ